आईना सी है ज़िंदगी - कविता - कपिलदेव आर्य

आईना सी है ज़िन्दगी, तू मुस्कुरा, 
और ये ज़िन्दगी भी मुस्कुरा देगी!
क्यों रोता है कि कुछ मिला नहीं? 
तू मांग तो सही, ज़िंदगी इतना देगी!

चाहतों में पत्थर मांगे, तो क्या मांगे, 
पूरा संसार मांगते तो भी मिल जाता!
पर दूसरों का सुख, देखकर रोने वाले, 
पहले हँसी मांग, ज़िंदगी भी हँस देगी!

भीतर से भरा है, तो कोई क्या देगा?
पहले उसे ख़ाली कर, ताकि भर सके!
फिर सोच, कि तुमको चाहिए क्या?
मिलेगा इतना, कि आँखें चुंधिया देगी!

ज़िंदगी वरदान है, अभिशाप न समझ, 
जी हर लम्हा इस तरह ज़िंदादिली से!
कि हर आरज़ू चलकर तेरे पास आये,
तू सोच नहीं सकता, क़ायनात जो देगी!

कपिलदेव आर्य - मण्डावा कस्बा, झुंझणूं (राजस्थान)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos