नज़ारों की तरहा - ग़ज़ल - प्रमोद "साहिल"

हम भी कभी थे सितारों की तरहा।
कि इन खूबसूरत नज़ारों  की तरहा।

जिये ज़िंदगी तो कुछ ऐसे जिये,
रहे हम ख़िज़ाँ में बहारों की तरहा।

बिका कौन कितना लगा मोल कैसे,
ये रिश्ते हुए अब बज़ारों  की तरहा।

बनाया है ऐसा मिजाज़ हमने अपना,
मिले दुश्मनों से भी तो यारों की तरहा।

चल ना ख़ुदा अब तू लहरों की जानिब,
बहुत जी लिए हम किनारों की तरहा।

मिलेगा मुक़द्दर तो पूछूंगा 'साहिल'
रखा भीड़ में क्यूँ कतारों की तरहा।

प्रमोद "साहिल" - झाँसी (उत्तर प्रदेश)

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