रामराज्य के लिए हर किसी की हिस्सेदारी जरूरी - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

अब जब राम मंदिर का शिलान्यास शांति एवं सौहार्दपूर्ण माहौल में संपन्न हुआ है तो समझो एक नए युग का आगाज हुआ है।
अब रामराज्य के लिए हर किसी की हिस्सेदारी जरूरी हो गई है। अब लोगों ने माना है कि श्री राम राष्ट्र के स्वाभिमान हैं, महानायक है, उनको कलंकित कर देश आगे नहीं बढ़ सकता।
मेरी एक रचना है-
मां भारती की आन का,
वीरों के बलिदान का।
राम मंदिर प्रतीक है,
राष्ट्रीय स्वाभिमान।
जी यह पंक्तियां बिल्कुल पूर्णतया सत्य है, पूरा देश आज राम को नायक मानकर चलने को तैयार है। चाहे वह कोई भी धर्म हो, संप्रदाय हो ,वर्ग हो।
यही नये युग का आगाज है, स्वागत है।
रामराज्य के मुख्य तत्व हैं, राजा का समदर्शी होना, देश में सभी के साथ एक समान व्यवहार, सुरक्षा व न्याय, सभी का ख्याल रखना।

रामराज्य में राजा जनता का प्रतिनिधि होता है। अब जब राम मंदिर का खुल कर स्वागत किया जा रहा है तो आशा की जानी चाहिए कि सच्ची आस्था भी जागृत हो ,और जब सच्ची आस्था राम के प्रति जागृत होगी तो जाहिर है लोगों के विचार में, व्यवहार में, आचरण में परिवर्तन आएगा, चाहे वह राजा हो या प्रजा, अर्थात बदलाव का समय आ गया है।
लेकिन बदलाव तभी संभव होता है तभी सार्थक होता है जब हर इकाई स्वयं को बदलना चाहे। 
श्री राम तो भारत की आत्मा है, भारत का हृदय हैं
अब  निश्चय ही उनकी कृपा दृष्टि मां भारती के लालों पर पड़ेगी। राम जी समदर्शी थे वे व्यक्ति से लगाकर पशु पंछी और निर्जीव वस्तुओं पर भी दया करते थे उनका ख्याल रखते थे। 
जाति, धर्म, वर्ग किसी भी चीज का पक्षपात उनके नजर में नहीं था।
वह एक सच्चे समदर्शी थे, इसीलिए संसार ने उन्हें ईश्वर माना और उनका राज्य, रामराज्य एक अमर राज्य बना।
उन जैसा राजा बनना हर किसी राजा का स्वप्न होता है।लेकिन उसमे प्रजा की सहभागिता भी जरूरी होती है अकेले राजा के चाहने से राम राज्य नही बनते।
रामराज्य की अवधारणा किसी धार्मिक संकीर्णता की द्योतक नही है। मैंने श्री राम के समदर्शी होने को कुछ हद तक अपनी इस कविता के जरिये उतारने की कोशिश की है।
राम हृदय शिव वास है शिव मे हैं श्री राम।
सीता हिय श्री राम है, लखन लाल के राम।
कौशल्या के राम वह कैकेयी के राम।
सदा सत्य श्री राम है भरत भ्रात  श्री राम।
विश्वमित्र के राम वह गुरु वशिष्ठ के राम।
गिद्धराज के राम वह  जामवन्त के राम।
सुग्रीवहि प्रिय राम हैं कपि रीछन के राम।
उनसा जग  कौन हैं दसरथ हिय श्री राम।
हनुमत हिय मे राम है शबरी के श्री  राम।
बाल्मीकि के राम वह तुलसिदास के राम।
वह रहीम के राम थे  वह कबीर के राम।
शिव शंकर के  प्राण वे जगदपिता श्री राम।
और अधिक अब क्या कहूँ भारत हिय श्री राम।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)

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