हाँ जी! मैं कैदी कलम हूँ - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

हाँ जी! मैं कैदी कलम हूँ,
अबाध, अनवरत निर्भीत,
उन्मुक्त विहग उड़ता गगन,
अन्तस्थल अनुभूत भावित,
एकान्त, अविचल स्वतंत्र,
मनमौजी वाचाल स्पष्टभाषी,
यथार्थपरक उद्भावक सरल,
स्वाभिमानी निःस्वार्थ निर्मल,
बहुरंगी मनभावक कलम हूँ।

मानती हूँ जिद्दी हूँ प्रकृति,
सत्यवादी उचितवक्त्री,
नैयायिक पैरोकार जग,
लिखती हूँ आहें, दर्द की गाथा,
छल प्रपंच कपट झूठ सच,
करती हूँ पर्दाफ़ास भ्रष्टाचारी,
हत्या, दंगा, व्यभिचारी,
आतंकवाद या गद्दारी,
लिखती हूँ बेधड़क निःसंकोच,
पोल खोल की तरह काली स्याही
पर दिल की काली नहीं मैं,
सच्चाई की प्रतिमानक कलम हूँ।

हाँ मैं कैदी हूँ  स्वतंत्र विचारों के,
दुखी पीडित अवहेलित दास्तां के,
लावारिस पड़े चीथड़ों में लिपटे,
मज़बूर बेबस  क्षुधार्त मज़दूरों के,
जाति धर्म भाषा क्षेत्र में अहर्निश,
भेदभावों कलह दंगों के,
लेखा जोखा नैतिक पतन के 
अवसादों से सतत अवसीदित,
धीर वीर सहिष्णु संवेदक,
साहसी निष्कपट  कैदी कलम हूँ। 

मैं कलम हूँ प्रेमीयुगल अहसास का
मैं सौन्दर्य का षोडश शृङ्गार हूँ,
विरह विप्रलम्भ का उद्भावक,
प्रेमी मिलन संयोग का किश्तकार हूँ।
मैं मातृहृदय ममता का उद्गार हूँ,
मैं पिता का जीवन संघर्ष हूँ 
आह हूँ बेटियों का अनवरत,
हूँ प्रेरणा निर्भय सबल बेटियों के,
युगों से माँ भारती सम्मान हूँ,
सम्मान ए शाने वतन अल्फ़ाज हूँ,
हूँ क्रान्तिकारी युगों से अविरत,
सत्तासीन या बदलने की कूवत,
हाँ जी, मौन मैं कैदी कलम हूँ। 

अरमान हूँ मैं युवाओं के सतत,
दण्डधर हूँ सतत् अपराध के,
प्रशंसक नित सद्गुणों सत्कर्म के,
हूँ अहिंसक नित सत्यपथ,
मुझसे गल्तियाँ होती कभी,
पड़ जाता हूँ हाथ में कोई खली,
दर्पण बना इतिहास से ले आजतक,
सूत्रधार भविष्य का हूँ मैं सतत।
ईश वन्दन  या करें प्यार ए वतन,
समझ लो जिस रूप में भी मुझे,
शुभचिन्तक मै सदा कैदी कलम हूँ। 

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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