छोड़िए, हमने अब दिल को समझा लिया
कल्पनाओं में तुम रोज़ आने लगे
शेष अब क्या रहा , जब तुम्हें पा लिया
भूलकर भी तुम्हें भूल पाए न हम
दिल की दुनिया समझ तुमको अपना लिया
साँस टूटे भले , हम न टूटे कभी
मान सौगन्ध शब्दों में दुहरा लिया
गीत तुम, गीतिका मैं, ग़ज़ब साथ है
जिसको चाहा हृदय ने उसे गा लिया
कौन आदेश देता है जाने हमें
जो कहा उसने हमसे, वो मनवा लिया
बेख़बर ही रहे हम तो अंजाम से
फूल की तरह काँटों को सहला लिया।।।।
ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)