हर इंसान को अकेले ही,
सफर करना है और,
यह जिंदगी के चिरंतन सत्य है.....!!
इस अनिश्चित सफर में,
कौन सहेसा छूट जाएंगे,
कौन सऐसा जुड़ जाएंगे,
कब यह यात्रा खत्म हो जाएगी,
यह भी अनिश्चित सत्य है.....!!
इस अनिश्चित सफर में,
कब गिरी सरिता पर्वत मिलेंगे,
कब बाग वन सुंदर मिलेंगे,
कब कंटोको से भरा पथ मिलेगा,
कब फूलों से हरा पथ मिलेगा,
यह भी जीवन की अनिश्चित गति है......!!
कौन कहता है कि सपनों को,
ना आने दो हृदय में,
देखते हैं सब इन्हें,
अपनी उम्र अपनी समय में,
कुछ होते हैं सच तो कुछ रह जाते हैं अधूरे,
यह मानव जीवन की विडंबना है,
इसको स्वीकारना हमारा कर्तव्य है.......!!
मधुस्मिता सेनापति - भुवनेश्वर (ओडिशा)