गुरु पूर्ण माँ - कविता - सौरभ तिवारी

माँ ही पूर्ण गुरु है जग की
माँ पहला ज्ञान सिखाती है।
ममता के पुस्तक बाँच बाँच
जीवन की राह दिखाती है।

पहला अक्षर ही जीवन का
माँ माँ माँ ,ही होता हैं।
बार बार रटता इसको
चाहे हँसता हो या रोता है।

गुरु हमें सिखलाते कैसे
हमको जीवन पथ चलना है।
माँ की उंगली हमें बताती
कदम कदम यूँ चलना है।

इस ब्रह्मांड की सारी शिक्षा
माँ सहज हमें बतलाती है।
घुटनों से चलबाकर हमको
पैरों पे खड़ा कराती है।

पैरों में घुंघरू पहना कर
आगे बढ़ने को कहती है।
कहीं चोट न आ जाए
माँ हाथ थाम के रहती रहती है।

नैतिकता की शिक्षा भी
माँ खेल खेल में देती है।
पहले ईश्वर को नमन करो
तब लड्डू खाने देती है।

बड़ों का आदर करना भी
बचपन से माँ सिखलाती है।
झूठ कहोगे, हउआ काटेगा
कह कर हमें डराती है ।

हमें सुनाती रोज कहानी
मानवता, आदर्शों की।
देश प्रेम और शिक्षाप्रद
आजादी के संघर्षों की।

यही प्राथमिक ज्ञान हमें
माँ का आंचल सिखलाता है।
सारे ग्रंथों का सार हमें
एक माँ से ही मिल जाता है।

माँ विश्व-गुरु है, नमन इन्हें
मैं नित नित शीश झुकाता हूँ।
पूर्ण गुरु माँ के चरणों मे
श्रद्धा के सुमन चढ़ाता हूँ।


सौरभ तिवारी - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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