सदाचार परहित विनत , समरसता गुरु सोय।।१।।
लोभ मोह मद झूठ को , अन्तर्मन तज धीर ।
त्याग शील गुण कर्म से , स्नेह दया गुरु क्षीर।।२।।
गुरु मानस हो पूत सम , शिष्य बने अभिमान।
बिना भेद सब जन सुलभ , ज्ञान मिले वरदान।।३।।
सत्यं शिव सुन्दर स्वयं , गुरु त्रिदेव समान।
पूजनीय सादर नमन, गुरु श्रेष्ठ भगवान।।४।।
गुरु स्वयं परब्रह्म नित , कर मानव निर्माण।
ज्ञान शलाका बाँटकर , कर नवयुग कल्याण।।५।।
सफल शिष्य गुरु संपदा , हो जीवन का ध्येय।
वशिष्ठ सन्दीपन समा , विष्णुगुप्त गुरु गेय।।६।।
जाति धर्म धन दीनता , न हो ज्ञान आधार।
हो मेधा सह साधना , त्याग कर्म आचार।।७।।
शिक्षा हो सर्वजन सुलभ , ज्ञानी हो सम्मान।
गुरुता हो आचार में , शास्त्रनिपुण विद्वान।।८।।
गुरु महिमा है अति गहन,अखण्ड मण्डलाकार।
उपचारक नित वैद्य सम , जगत ज्ञान आधार।।९।।
मातु पिता अरु श्रेष्ठजन , गुरु शिक्षण दे नेह।
सम्मानित हो जगत में , सफल मनुज नित देह।।१०।।
कर निकुंज सादर नमन , सकल ज्ञान आधार ।
अग्रगण्य गोविन्द सम , आलोकित संसार।।११।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली