गुरु महिमा है अतिगहन - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

मातु  पिता भाई समा , मीत   प्रीत   गुरु   होय।
सदाचार  परहित विनत , समरसता  गुरु  सोय।।१।।

लोभ  मोह  मद  झूठ को , अन्तर्मन तज  धीर ।
त्याग शील गुण कर्म से , स्नेह  दया  गुरु  क्षीर।।२।।

गुरु मानस हो पूत सम , शिष्य  बने   अभिमान।
बिना भेद सब जन सुलभ , ज्ञान  मिले  वरदान।।३।।

सत्यं  शिव  सुन्दर   स्वयं , गुरु   त्रिदेव  समान।
पूजनीय    सादर   नमन,  गुरु  श्रेष्ठ    भगवान।।४।।

गुरु स्वयं  परब्रह्म  नित , कर  मानव    निर्माण।
ज्ञान शलाका  बाँटकर , कर  नवयुग  कल्याण।।५।।

सफल शिष्य  गुरु संपदा , हो जीवन का  ध्येय।
वशिष्ठ   सन्दीपन  समा , विष्णुगुप्त   गुरु  गेय।।६।।

जाति  धर्म   धन  दीनता , न  हो  ज्ञान  आधार।
हो  मेधा  सह  साधना , त्याग  कर्म      आचार।।७।। 

शिक्षा  हो   सर्वजन  सुलभ , ज्ञानी  हो  सम्मान।
गुरुता  हो  आचार   में ,  शास्त्रनिपुण    विद्वान।।८।।

गुरु महिमा है अति गहन,अखण्ड मण्डलाकार।
उपचारक  नित  वैद्य  सम , जगत ज्ञान आधार।।९।।

मातु पिता अरु  श्रेष्ठजन , गुरु  शिक्षण  दे  नेह।
सम्मानित हो जगत  में , सफल मनुज नित देह।।१०।।

कर निकुंज सादर नमन , सकल ज्ञान  आधार ।
अग्रगण्य   गोविन्द  सम , आलोकित    संसार।।११।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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