शिष्टाचार को कमजोरी न समझे - कहानी - शेखर कुमार रंजन

मैं उसे देखकर खड़ा हो गया क्योंकि मेरे परिवार वालों ने मुझे यहीं शिष्टाचार दिया हैं, कि बूढ़े औरत और अपाहिज को देखना तो अपना स्थान दे देना बैठने के लिए। मानता हूँ कि उसका पाँव सही सलामत था किंतु क्या करते किसी जमाने में कुछ कर्ज दिया था खैर वो तो कब का ही चुका  दिया था किन्तु फिर भी मुझे लगा किसी की मदद करना कोई बुरी बात नहीं है मैं खड़ा हो गया उसको अपना सीट बैठने को दे दिया अगले स्टेशन पर उसे उतरना था और मुझे तीन चार स्टेशन बाद उतरने थे किंतु तभी उसके जान-पहचान का कोई व्यक्ति आकर उससे बात करने लगा वह खड़ा था एक ओर मैं भी खड़ा था किंतु दोनों आपस में बात कर रहे थे और बात करने के क्रम में आखिर यह बोल ही दिया कि मैं उठूँगा तो आप बैठ जाइयेगा मुझे यह सुनकर काफी ज्यादा बुरा लगा कि मैंने अपना सीट इसे दिया और ये फिर उतर रहा है तो यह सीट मुझे न देकर किसी और को दे रहा है आज मुझे जीवन में पहली बार किसी गलत इंसान का साथ देने का मलाल हो रहा था।

अगला स्टेशन आया और वह उस इंसान को बैठने को बोला फिर उतरते हुए उसे कहा कि मुझे कितना भी भीड़ क्यों न हो, बस में मुझे सीट मिल ही जाता हैं उसने कहा कैसे सर तो, उसने कहा यहाँ लोग मुझसे काफी डरते है मुझे यह सुनकर अपने आप पर काफी गुस्सा आ रहा था मैं सोच रहा था कि मैं उसे सीनियर समझकर आदर के भाव से उसको अपना सीट दिया था बैठने के लिए और उसे लगता है कि मैं उससे डरता हूँ। खैर मैंने तत्काल कुछ कहना ठीक नहीं समझा पर मेरे मन में एक ख्याल आया था कि डरता तो मैं किसी के बाप से भी नहीं बस बड़ो की इज्ज़त करना मुझे अच्छा लगता है और  खुद की इज्जत टपोरियों से बिना मुह लगाएँ बचा लेता हूँ किन्तु एक बात तो हमेशा दिल में रहता है कि मैं ठहरा एक प्रतिष्ठित व्यक्ति किन्तु बात यदि मेरे प्रतिष्ठा के ऊपर आ जाएं तो फिर कितना भी बड़ा तुर्रमखां क्यों न हो, मेरे सामने नहीं चलेगा क्योंकि मानता हूँ तुम्हारें पास होगा बहुत कुछ खोने के लिए किन्तु मेरे पास सिर्फ बचपन से कमाया हुआ प्रतिष्ठा ही है और मैं सोच रहा था उसे रोककर यह कह दू की सुन मैं तेरा आदर करता था और इसे तुम मेरी कमजोरी समझ बैठा मैंने तुम्हें जगह क्या दिया, तू तो मेरा ही जगह साफ कर दिया किन्तु फिर सोचा छोड़ो अब अगली बार जरा सोचकर-समझकर किसी पर विश्वास करूँगा अब आप ही बताइये किसी की इज्जत करो तो उसे लगता है कि मैं उससे डरता हूँ।

कैसा समय आ गया है? इसका बहुत बुरा प्रभाव आने वाले भावी पीढ़ियों पर पड़ सकता है इसलिए हमें इस तरह की वर्ताप नहीं करनी चाहिए।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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