मेरी आंखों ने ना जाने कैसे कैसे मंजर देखे है
गैरो का क्या,अपनो के हाथों मे खंजर देखे है
एक जमीन के टुकडे के बंटवारे को लेकर
ना जाने कितने घरो मे मैने बबंडर देखे है
जिन्होंने जमा पुंजी बच्चों के भविष्य बनाने लग दी
उन मां-बाप की आंखो मे आंसुओ के समुंदर देखे है
नारी को मांस का टुकड़ा समझकर झपट पडता है
अजी छोडिए मैने तो इंसानों के अन्दर भी जानवर देखे है
चीनू गिरि - देहरादून (उत्तराखंड)