चीनू गिरि - देहरादून (उत्तराखंड)
मेरी आंखों ने ना जाने कैसे कैसे मंजर देखे है - कविता - चीनू गिरि
शुक्रवार, जून 12, 2020
मेरी आंखों ने ना जाने कैसे कैसे मंजर देखे है
गैरो का क्या,अपनो के हाथों मे खंजर देखे है
एक जमीन के टुकडे के बंटवारे को लेकर
ना जाने कितने घरो मे मैने बबंडर देखे है
जिन्होंने जमा पुंजी बच्चों के भविष्य बनाने लग दी
उन मां-बाप की आंखो मे आंसुओ के समुंदर देखे है
नारी को मांस का टुकड़ा समझकर झपट पडता है
अजी छोडिए मैने तो इंसानों के अन्दर भी जानवर देखे है
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