सोशल मीडियाः अभिशाप या वरदान - लघु निबंध - डॉ. राम कुमार झा ''निकुंज"

सोशल मीडिया अर्थात् सामाजिक प्रसार तंत्र या यों कहें विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की चौथी आँख। संचेतना संवेदना की अनवरत सजग सचेत अनवरत  लोकमानस का सशक्त निष्पक्ष प्रहरी। जन मन के हितचिन्तक, संसाधक, प्रमाणक पारदर्शी  निश्छल दर्पण। पत्रकारिता, दूरदर्शन विविध मंच , फेसबुक, व्हाट्सएप, मैसेंजर , ब्लाग, यू ट्यूब, इंस्टाग्राम, हाइक, मेल , गूगल आदि न जाने कितने अनगिनत पटल अबाध गतिमान मानवीय मूल्यों, संवेदनाओं, राजधर्म , जनता और प्रशासकीय अधिकारों  सह कर्त्तव्यों के संवाहक, नियन्त्रक, दिग्दर्शक, प्रेरक क्रान्तिकारी संयोजक सोशल मीडिया के विशालकाय व्योमवत आयाम आज संसारिक जीवन में विद्यमान हैं। सबका उद्देश्य बस जन मन, राष्ट्र और मानवता का अविरत कल्याण है। हमारे मौलिक अधिकारों का संविधान सम्मत पालन, जन संसाधनों के जन जन तक लाभ पहुँचने का अनुवीक्षण, परीक्षण, अनैतिक हिंसा, नारियों का शोषण, दंगा फसाद, लूट घूस भ्रष्टाचार वित्तीय गमन चतुर्मुखी विकास का प्रस्तुतीकरण, शिक्षा, विज्ञान, कला, साहित्य, संगीत आदि का वास्तविक समीचीन प्रकटीकरण और राष्ट्र की सीमा सुरक्षा, गौरव, सम्मान सह एकता अखण्डता का पूर्णतः सटिक निर्वहण आदि विविध  सुनियोजित नैयायिक यथार्थ प्रतिपादन कार्य हैं जो सार्वकालिक सार्वभौमिक और सार्वजनीन लोकमंगल राष्ट्र कल्याणकारक हो। 

अब प्रश्न है कि यदि उपर्युक्त वृहत्तर उद्देश्यों का निरूपण, प्रकटीकरण हो, जिससे राष्ट्र का सर्वांगीण विकास, साम्प्रदायिक सद्भाव और समरसता का सुधामय संदेश सोशल मीडिया दे, तब तो वास्तव में वह समाज देश, विदेश ही नहीं अपितु मानवता का वरदान है। 
परन्तु क्या आज सोशल मीडिया उपर्युक्त मानदण्डों पर खड़ा उतरती है?
मेरा मत है नहीं। आज की मीडिया धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र, देशविरोधी और पक्षीय गतिविधियों में संलिप्त विविध धाराओं में विभक्त है। आज सोशल संसाधनोंज़, नेटवर्कों का उपयोग केवल आलोचना, सामाजिक सद्भाव और भाईचारे को बिगाड़ने वाला, घृणा, द्वेष, ईर्ष्या को फैलाने में हो रहा है। आज राष्ट्र हित से विलग सोशल मीडिया गलत लेखिनी, बयानों, वाद- विवाद और राजनीतिक दलीय लाभालाभ में पर लोकतंत्र के पावन निर्मल पारदर्शी चौथी आँख को बन्द कर आर्थिक लाभार्थ अपने वज़ूद और ज़मीर को खोकर अपने सद्मार्ग से दिग्भ्रमित हो गयी है। 
अतः आज लोकतंत्र का संविधान संवाहक लोकहितकारी  सोशल मीडिया देश समाज, विश्व पटल, मानवीय नैतिक और भौतिक मूल्यों के निर्वहण पथ में अवसाद या अभिशाप बनती जा रही है।

जाति धर्म भाषा, क्षेत्र और लघुतर घटनाओं को भी वाद विवाद, लेखों, सम्मेलनों, सम्पादकीयों आदि के माध्यम से भड़काऊ गलतबयानी से सामान्य जन मानस के मन में घृणा, द्वेष, अतिक्रमण , दंगे फ़साद, मार काट आदि कुत्सित भावनाओं को जगाने की साजी़श रचती आ रही है। यहाँ तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में आतंकियों एवं उनके संरक्षक देश के ख़िलाफ़ भारत सरकार के द्वारा उठाये गये कठोर कदमों पर भी छिछोड़ी बहसों के द्वारा राष्ट्रीय अहित पहुँचाने में कोई अवसर या कसर छोड़ती नहीं। 
भारत के टुकडे टुकड़े राष्ट्रद्रोही गैंग की सम्पोषक सोशल मीडिया लोकतंत्र के लिए अभिशाप बनती जा रही है। 
इसी का प्रमाण दिल्ली दंगा, शाहीन बागी दंगे, जे एन यू , जामिया मीलिया, अलीगढ़, हैदराबाद, यादवपुर जैसे कुछेक देशद्रोही विश्वविद्यालयीय उपद्रवी छात्रों के समर्थन में अवार्ड वापसी गैंग की कालिमा से आबद्ध कुछेक राष्ट्रीय सोशल मीडिया ने देश और सरकार के विरुद्ध संघर्ष की आग भड़काने में मशगूल हैं। लाखों करोड़ों हजार राष्ट्रीय सार्वजनिक और व्यक्तगति धन जन के विनाश का कारण बनी है। गुजरात दंगा, गोधरा कांड, भागलपुर अँखफ़ोड़वा कांड, मुजफ्फ़रनगर दंगा और रोहित बेमूला के साथ ही, कन्हैया, ऊमर जैसे लोगों को महिमामंडित करने में ये सोशल मीडिया महारथ हासिल करती जा रही है। करोड़ों लोगों के लोकप्रियता को प्राप्त अरबपति नेताओं, अभिनेताओं, पत्रकारों, साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों और कुछ न्यायाधीश आदि देशविरोधी मानसिकता के गुलाम महामानवों को आज देश और संविधान, लोकतंत्र खतरे में दृष्टिगत हो रहा है और उन्हें अपने देश में ही रहने में डर लग रहा है।

लानत है ऐसे सोशल मीडिया की सोच और बुद्धिजीवी सिपहसालारों को। 
आज अपनी अस्मिता और पहचान को खोती जा रही सोशल मीडिया को पुनः अनैतिक राष्ट्र विरोधी मानसिकता को त्यागकर पुनः लोकतंत्र की चतुर्थ आँख बनने का अथक प्रयास करना चाहिए।
तभी लोकजनमंगल राष्ट्र सह लोकतंत्र की रक्षा हो सकेगी।


डॉ. राम कुमार झा ''निकुंज" - नई दिल्ली

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