मेरे बगैर - कविता - नौशीन परवीन

रब ने हमारे रास्ते
अलग कर दिये तो क्या
वो हम से दूर हो गए तो क्या
एक सवाल आज भी
पूछता है दिल मुझसे
किसी राह में किसी मोड़ पर
हम फिर कभी मिलेंगे क्या
क्या याद आती है तुम्हें भी
वो गुजरी हुई रातें
जब होती थी 
ढेर सारी बातें
तो कभी रुठने-मनाने में 
बीत जाती थी रातें
क्या अब कभी कह पाओगे
आकाश का चांद तो सबका है
धरती का चांद 
तुम्हारा अपना है
इन बातों को याद कर
क्या तुम मुस्कुरा पाओगे
अब मेरे ख्यालों में तुम
खुद को बेचैन,उदास पाओगे
सच कह देना अब
क्या मेरे बगैर जी पाओगे?

नौशीन परवीन - रायपुर (छत्तीसगढ़)

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