आत्मनिर्भर - कविता - शेखर कुमार रंजन

यदि पिता के धन पर जीते हो, तो
जीना अभी अधूरी है
आत्मनिर्भर हो जाने पर ही
जीवन समझो पूरी है।

वैसाखियों पर चलने वाला
ना जाने कितनी बार गिरी है 
जीवन जीने के लिए
आत्मनिर्भर होना,बहुत जरूरी है।

अब किसी पर ना निर्भर होंगे
यह विचार बड़ा ही प्यारा है
आत्मनिर्भर बनेंगे हम
यह संकल्प हमारा है।

जिसको खुद पर विश्वास नही हो
वो जीवन भर रो सकते है
आत्मभावना से परिपूर्ण व्यक्ति
आत्मनिर्भर हो सफल बन सकते है।

जीवन बहुत ही प्यारी होती है
जीवन के गुर को जानिए
खुद के काम को खुद ही करिये
और आत्मनिर्भरत बन जाइए।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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