हमारा समाज और मीडिया - लेख - पम्मी कुमारी

चीन में कोरोना मरीजों को वहां की सरकार गोली से मरवा रही। सैटेलाइट इमेज से पता चल रहा कि चीन में लाशों को जलाने से आकाश लाल हो गया है। चीन में लोगों को घरों में कैद कर भूखे प्यासे मरने के लिए छोड़ दिया गया है। चीन में कोरोना वायरस के कहर से, सड़कों पर मिल रही लाशें, चलते हुए मर रहे लोग।
ऐसी तमाम न्यूज और वॉट्सएप वीडियो साल के शुरुआत में भारत में जोरों से चल रहा था। आज भारत में पांच लाख से अधिक मरीज हैं और चीन में 80 हजार।
जरा अब सोचिए आपको खबर के नाम पर कितना अफवाह परोसा जाता है। कोई जरूरी नहीं कि अफवाह हर बार जानबूझकर फैलाया जाता हो। ये उस समाज पर निर्भर करता है कि वो कितना जागरूक और तर्कवादी समाज है जो किसी भी बकवास को कितनी जगह देता है।
समाज की तर्कशक्ति उसके रचने बसने और विकास के दौरान अपनाए गए तरीकों, विश्वासों आस्था जैसी घटकों पर निर्भर करता है। इन घटकों के विकास की प्रक्रिया में उसके धर्म का सबसे महत्वपूर्ण योगदान होता है। लेकिन हमारा धर्म अफवाहों में विश्वास करने की प्रेरणा से भरा पड़ा है।
हमारा पूरा धर्म ऐसी ऐसी कहानियों पर टिका है जो तर्क जैसी समझ और सत्य की खोज करने की प्रेरणा से कोसो दूर है।

हालांकि भारत में ही चावर्क कबीर और बुद्ध जैसे ब्यहवारीक और तर्कवादी व्याख्या करने वाले धार्मिक दर्शन भी हैं। लेकिन ये किताबों में सिमटे बेहद छोटे बुद्धिजीवी वर्ग तक ही सीमित है।समाज में जबतक तार्किक आस्था का प्रचलन नहीं बढ़ेगा ऐसी अफवाह आगे भी फैलती ही रहेगी।

पम्मी कुमारी - रुन्नीसैदपुर, सीतामढ़ी (बिहार)

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