वह आंखें दिखलाता है - कविता - सतीश श्रीवास्तव

हिंदी चीनी भाई भाई उसकी समझ न आता है,
जिसकी आंखें खुली न पूरी वह आंखें दिखलाता है,
पागलपन अब हद से ज्यादा चीनी ने दिखलाया है,
गीदड़ भागा शहर तरफ अब मौत ने उसे बुलाया है।
जिसकी बुद्धि भृष्ट हुई हो कुछ भी समझ न आता है,
जिसकी आंखें खुली न पूरी वह आंखें दिखलाता है।
मंत्र दिए दुनियां भर को
हमने भाईचारे के,
लेकिन गुनाह न माफ़ किये हैं कभी किसी हत्यारे के।
कायर  शक्ति लगा ले पूरी जीत नहीं वह पाता है,
जिसकी आंखें खुली न पूरी वह आंखें दिखलाता है।
हमने अपने सैनिक खोये इसको भूल न पायेंगे,
तेरे ही आंगन में आकर तुझको धूल चटायेंगे।
कायरता वाले मंत्रों का काम न हमें सुहाता है,
जिसकी आंखें खुली न पूरी वह आंखें दिखलाता है।
व्यवसाई बन हमसे ही तुम आश्रय लेते रहे सदा,
तुम्हैं मिटाने को काफी है हनुमान का एक गदा।
अहं न जीवित रहा किसी का यह इतिहास बताता है,
जिसकी आंखें खुली न पूरी वह आंखें दिखलाता है।
तेरे कामकाज की आंखें मेरी ओर ही तकतीं हैं,
हमें पता तेरी रोटीं किस चूल्हे पर पकतीं हैं।
उपसंहार कहानी का तूं हमसे क्यों लिखवाता है,
जिसकी आंखें खुली न पूरी वह आंखें दिखलाता है।

सतीश श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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