यही तो है जिंदगी - कविता - मधुस्मिता सेनापति

यह जिंदगी आग की तरह है जनाब
यह आग अपने आप नहीं जलती
आग जलने के लिए चिंगारियो की जरूरत होती है....

यह जिंदगी रंगमंच है जनाब
जहां नाटक अपने आप नहीं होती 
यहां नाटक करना पड़ता है.......

यह जिंदगी कोरा कागज है जनाब
यहां अभिव्यक्ति अपने आप नहीं होती
यहां कलम चलाना ही पड़ता है......

यहां जिंदगी दिखावा की दुकान है जनाब
यहां हंसने की इच्छा ना हो
तो  भी हंसना पड़ता है........

जिंदगी मां की ममता जैसा है जनाब
जहां बच्चों को रोना पड़ता है
तब ही तो बच्चे के भूक की पता चलती है......

यह जिंदगी किताब है जनाब
यहां किताब बिना खोले जानकारी नहीं मिलती
 यहां जिंदगी के किताब को खोलना पड़ता है.....

इस दुनिया में जन्मजात कुछ नहीं है जनाब
इस दुनिया को देखकर सीखना पड़ता है 
और हासिल करना पड़ता है.......

मधुस्मिता सेनापति - भुवनेश्वर (ओडिशा)

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