इसलिए मौन हूँ - कविता - चीनू गिरि

इसलिए मौन हूँ!
रिश्ते बने रहे सब की खुशी के लिए,
इसलिए मौन हूँ !
खमोशी से देखना चाहती हुं कौन मेरा है,
इसलिए मौन हूँ !
बात करते ही बहस हो जाती है सब रुठ जाते है,
इसलिए मौन हूँ !
जवाब मेरे पास भी है मगर संस्कारो से बन्धी हुं,
इसलिए मौन हूँ !
मैने अपने हालातों से अब समझता कर लिया ,
इसलिए मौन हूँ !
शायद अभी मेरे बोलने का वक्त नही आया,
इसलिए मौन हूँ !

चीनू गिरि - देहरादून (उत्तराखंड)

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