स्वदेशी अपनाओ जी - कविता - सौरभ तिवारी

अपनी शक्ति को पहचानो
खुदमें विश्वास जगाओ जी
छोड़ो वैसाखी से चलना
स्वदेशी अपनाओ जी ..

चीर के सीना धरती का
सोना निकालना आता है
दिखला दो दुनियाँ को 
अपनी दम पर जीना आता है।
छोड़ विदेशी जंजालों को
अपना कर्तव्य निभाओ जी
स्वदेशी  अपनाओ जी..

सोने की चिड़िया है भारत
क्या नहीं है इसमें पाने को
हमसे कच्चा माल हैं लेते
दुनियां में लूट मचाने को ।
बहुत लुट चुके,होश में आओ
सब मिल संकल्प उठाओ जी
स्वदेशी अपनाओ  जी ..

नीम लिए भारत से
हमको पेप्सोडेंट थमाए
हमसे ही अपनी चीज़ों के
मनमाने दाम कमाए।
अपनी संपदा को पहचानो
बातों में न आओ जी
स्वदेशी अपनाओ जी..

छोड़ बटर ये चर्बी बाले
मक्खन रोटी खाना है
ये अपने घर मे मिलता है
बाहर से नहीं मँगाना है।
छोड़ो पिज्जा,चायनीज को
अपनी संस्कृति अपनाओ जी।
स्वदेशी अपनाओ जी..

सुई से लेकर हवाईजहाज तक
भारत के ही अपनाएंगे
स्वाभिमान से बढ़ेंगे आगे
अपनी शक्ति दिखलाएंगे।
ठान लो मन में, घर घर मे अब
सब मिल अलख जगाओ जी।
स्वदेशी अपनाओ जी..

इन्ही विदेशी कंपनियों से
भारत धोखा खाया था
अपने देश को लूट लूट 
हमको परतंत्र बनाया था।
फिर न ऐसा मौका आये
अभी से सब जग जाओ जी
स्वदेशी अपनाओ जी..


सौरभ तिवारी - शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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