तेरी तिरछी नजरिया मेरा चैन ले गई - गीत - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"

तेरी तिरछी नजरिया, मेरा चैन ले गई।
मेरी रातों की निंदिया, ही चुरा ले गई ।
तेरी यह चितवन, मेरा हृदय ले गई। 
मुझको वो यूं ही, बेताब कर चली गई ।
तीर ह्रदय के पार, कर के चली गई।
तेरी तिरछी चितवन, मेरा चैन ले गई।

तेरी नजरिया, मेरा मस्तिष्क चुरा ले गई।
मुझे यह बहुत अधिक, बेचैन कर गई।
बीच बजरिया वह, मुझसे मिल गई।
इक बार छिटक के, दूर निकल गई।
तेरी तिरछी नजरिया, मेरा चैन ले गई।

भौंन में भौंन से, जाने कुछ कह गई।
इशारे ही इशारों में, मुझसे कह गई।
जीवन मुझे फिर से, एक नया दे गई। 
मुझ पर एक ऐसा, एहसान कर गई।
तेरी तिरछी नजरिया, मेरा चैन ले गई।

मुझे मुझसे ही दूर, लेकर निकल गई ।
वह तो अपना अक्श, दिखा चली गई।
मेरी ना होकर भी, मेरी होकर रह गई। 
देखते ही देखते वो, तो गुम हो गई। 
तेरी तिरछी नजरिया, मेरा चैन ले गई।

बड़ी मुद्दत के बाद, मन्नत पूरी हो गई। 
पल में ही प्यारा-सा, इजहार कर गई।
मुझ को मुझ से ही, चुरा ले गई 'विकल' 
उसका हो गया, हाथ पकड़ कर ले गई।
तेरी तिरछी नजरिया, मेरा चैन ले गई। 
मेरी रातों की निंदिया ही, उड़ा ले गई।

दिनेश कुमार मिश्र "विकल" - अमृतपुर , एटा (उ०प्र०)

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