हम मिलेंगे स्वर्ग के द्वार - कविता - बजरंगी लाल

मेंरे दिल को दुखाकर तुम मेंरे दिल में ही रहती हो,
छुड़ाकर साथ अपना तुम मुझे क्यों दूर करती हो।
नहीं है प्यार मुझसे जब कोई सुन लो मेंरी जा़ना,
हमारे काव्य पर फिर भी तूँ लाइक,प्यार करती हो।।

फेसबुक पर मेंरी तुम पंक्तियों को रोज़ पढ़ती हो,
मेंरी तुम बदनसीबी पर शायद उपहास करती हो।
मेंरे मौला मेंरे ईश्वर, मेंरी ज़ाना-मेंरी ज़ाना,
आ लग जा गले से तुम मुझे क्यों दूर करती हो।।

नए नम्बर से करके काल मुझसे पूछती हो कौन, 
बताकर मैं पता अपना हो जाता हूँ हमेंशा मौन।
काटकर फोन इतने में तुम शायद मुस्कुराती हो,
मगर दिल में लगी इस अग्नि को पहचानता है कौन।

मुझे लगता है तुम्हें भी सताता लोक का है डर, 
नहीं आयी इसी से तुम अभी तक ब्याह के इस घर
नहीं सम्भव है कि हम मिल सकें इस जन्म में इस बार,
दुवाएँ करती रहना, हम मिलेंगे स्वर्ग के ही द्वार।।

बजरंगी लाल - दीदारगंज, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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