क्या ख़ता हो गई - ग़ज़ल - प्रदीप श्रीवास्तव

आप नाराज़ हैं क्या ख़ता हो गई।
इन लबों की हँसी बेवफ़ा हो गई।।

ये मुहब्बत बड़ी ही ग़ज़ब चीज़ है,
पहले देती मज़ा अब सज़ा हो गई।।

दूर मंज़िल थी लम्बा सफ़र ज़िंदगी,
आप बिन खोया इक रास्ता हो गई।।

आपकी हर ख़ुशी से हमारी ख़ुशी,
आपका साथ  जैसे दुआ हो गई।।

इस चकाचौंध में खो गया आदमी,
बढ़ गई चाह और बेमज़ा हो गई।।

प्रदीप श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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