मेरे पापा - कविता - आकांक्षा भारद्वाज

मेरी छोटी-सी ख्वाहिश
उनके लिए जैसे कोई सपना है
उसे पूरे करने की होड़ में
लगाते जी-जान अपना है।।

रोती हूँ मैं तो आँसू उनके बहते है
मुझे वो अपने सपनों की परी कहते है।
उंगली पकड़ के चलना उन्होंने मुझे सिखाया
दुखी जब होती थी तो गले लगाकर जीवन जीने का सही मतलब बतलाया।।

आज भी उनके बेग़ैर इस दुनिया में बहुत छोटी हूँ मैं
ईरादे तो होते है मगर काफी पीछे होती हूँ मैं...

आकांक्षा भारद्वाज - देवघर (झारखंड)

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