छल-छद्म से दूर रहकर, परोपकार में लगूं - दोहा - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"

हरित-पहाड़ों, फूलों की, महक हो जगदीश।
सत्यम्-शिवम्-सुंदरम् हो,शुभम द्वारिकाधीश।।

स्वस्थ जीवन का प्रभु! दो, कुछ ऐसा महादान। 
हम सभी तुम्हें देंगे प्रभु ! प्रतिपल ये प्रतिदान।।

जीवन रण-भूमि बन गई, देखो अब श्मशान।
रंग-भूमि जिंदगी बन गई, देखो  अब शव- खान।।

स्पर्श अपनों का नहीं, ना कोई एहसास ।
समय, सेहत, संबंधों का, ना कोई एहसास।।

आपका आशीर्वाद पा, हो गए धन्य, श्रीमान्।
पा सकें हम लक्ष्य अपना, बनें हम शीलवान।।

ढूंढता हूं राह नहीं, मिलती मुझे यहां पर।
मिलन की है चाह प्रभो, मिलती मुझे यहां पर।।

प्रभो पार करो नैया, मेरे तुम्ही हो खिवैया।
मझधार में उद्धार कर, तुम्हीं हो मेरे खिवैया।।

पाप से दूर कर प्यार, का प्रभु कर संचार। 
कर पुण्य कर्मों में लगूं , तू कोई उपचार।।

अधम,निकृष्ट, नापाक, संकट मेरे दूर कर।
प्रायश्चित बता ऐ प्रभु ! अब बेड़ा पार कर।।

संसार-पारावार से, ले दूर चलो प्रभो।
हाथों में पतवार ले, दूर तुम चलो प्रभो।।

छल-छद्म से दूर रहकर, परोपकार में लगूं।
दो आशीष मुझे हाथ, रख सत्संग में पगूं।।

मस्तिष्क में भूचाल है, हिमखंड जलधि में गिरे।
भावों को कर नियंत्रण, घन-आंगन में घिरे।।

भाग्यशाली हूं मानव, तन है मुझकोमिला।
देवों को भी दुर्लभ, ये तन मुझको मिला।।

जग में इतरा न पाऊं, भजन तेरा मैं करूं। 
श्रद्धा-विश्वास,भक्ति तेरी, प्रार्थना मैं करूं।।

कर संसार का भला मैं, गया कै बार छला।
पर ना कोई गम धैर्य, रास्ते पै मैं चला।।

परिजनों की सेवा कर, ऐसा दो वरदान। 
भक्ति प्रभु आपकी कर सकूं, ये दो शक्ति वरदान।।

आया लेकर कृश काय, तुम्हारी ही छाया।
कष्टों रोगों ने सताया, तुम्हारी प्रतिछाया।।

हर एक में विद्यमान हो, लक्ष्मी-नारायण  तुम।
हृदय बसि तरण-तारण, भक्ति- वत्सल कारण तुम।।

पर ग़म नहीं कुछ न मिला, प्यार तेरा मिले। 
शुभाशीष पाऊं तभी, जीवन मेरा खिले।।

दिनेश कुमार मिश्र "विकल" - अमृतपुर , एटा (उ०प्र०)

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