गरीबों के मसीहा - कविता - सतीश श्रीवास्तव

जब से मैंने उस गरीब की
देखी फटी बिवाई,
तुम्हीं बताओ कैसे कह दें
तुम्हें मसीहा भाई।
जिस दिन से यह दर्द बढ़े हैं
कोई पास नहीं है,
सारा जग है बेगाना सा
कोई खास नहीं है।
बुरे वक्त का कोई न साथी
सूर कबीरा गाई,
तुम्हीं बताओ कैसे कह दें
तुम्हें मसीहा भाई।
यह कैसा जीवन है जिसमें
भूख न छोड़े साथ,
तिल तिल कर मरने को छोड़ा
फिर तुम कैसे नाथ।
कैसे जय-जयकार करें और
कैसे करें बड़ाई,
तुम्हीं बताओ कैसे कह दें
तुम्हें मसीहा भाई।
हमने देखा भाव तुम्हारा
और भावना भांपी,
जर्जर देह थके पैरों से
हमने सड़कें नापी ।
एक कदम पर कुआं मिला
और दूजे पर खाई ,
तुम्हीं बताओ कैसे कह दें
तुम्हें मसीहा भाई।
हमने तुमको रामराज्य का
ठेका दिया हुजूर,
गद्दी पा लम्बे हुए
जैसे पेड़ खजूर।
तुम हो सबके पालक तो फिर
यह कैसी प्रभुताई ,
तुम्हीं बताओ कैसे कह दें
तुम्हें मसीहा भाई।

सतीश श्रीवास्तव - शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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