अपूर्ण जीवन - कविता - मधुस्मिता सेनापति

जीवन एक अपूर्ण किताव है,
जितना भी पढ़लो अपूर्ण ही लगता है!!

जीवन एक अपूर्ण नगमा है,
जितना भी गा लो अधुरा सा लगता है!!

जीवन एक सरिता है,
जितना भी पार कर लो,
किनारे पर रेहेने जैसा लगता है!!

जीवन पूर्णिमा रात की चंद्रमा है,
जितना भी देखलो अधुरा सा लगता है!!

जीवन एक कलम है,
जितना भी लिखलो कम सा लगता है!!

मधुस्मिता सेनापति - भुवनेश्वर (ओडिशा)

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