क्यूँ जिंदगी की बंदगी - नज़्म - सुषमा दीक्षित शुक्ला

जो एक दिन ठोकर लगाती,
वह जिंदगी है  बेवफा ।

गले मिलकर साथ जाती,
मौत ही वह दिलरुबा ।

पर मौत को नफरत मिले ,
बस प्यार पाए जिंदगी।

है  अजब दस्तूर है  ये ,
क्यूँ  जिंदगी की बंदगी ?

यह  जिंदगी है बेवफा,
पर बेवफा  से प्यार है ।

मौत जैसी दिलरुबा की ,
हर कहीं  दुत्कार  है ।

यह जिंदगी है बेवफा ,
पर सबक सारे सिखाती ।

मकसद बताती जन्म का,
फिर मौत से है खुद मिलाती ।


सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम , लखनऊ (उ०प्र०)

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