राजा - कहानी - पम्मी कुमारी

एक राजा था और वह जानता था, प्रजा कोई विरोध नहीं करने वाली अतः नित नए प्रयोग करता था तथा जानना भी चाहता था कि उसके कितने विरोधी पनप रहे हैं। उसने गांव से शहर जाने वाले एकमात्र पुल जिससे लोग रोज़ शहर काम धंधे पर जाते थे। अचानक राजा ने उस पुल से गुजरने वाले लोगों पर दो रुपये शुल्क लगा दिया और पुल को दोनों ओर शिकायत पेटी भी लगा दी।

रोज़ शाम को पेटी खोलकर देखी जाती लेकिन पेटी में कोई शिकायत नहीं न ही कोई सुझाव! राजा ने शुल्क बढ़ा कर चार रुपये कर दिया, फिर छः रुपये कहीं कोई चूं चां नहीं, कोई विरोध नहीं। क्योंकि जनता उस राजा से पहले वाले शासक से दुःखी थी इसलिए इस राजा के तमाम फैसलों पर प्रजा यह विचार करती थी कि पहले से तो बेहतर ही होगा।

राजा अपनी प्रजा की भक्ति से ख़ुश तो था किन्तु अभी उसको अपनी जनता के धैर्य और राजभक्ति की और परीक्षा लेनी थी। अचानक उसने घोषणा की कि पुल से गुज़रने वाले प्रत्येक व्यक्ति को दो जूते भी मारे जाएंगे, लोग देशहित में जूते खाने लगे। तीन दिन बाद शिकायत/सुझाव पेटी लबालब भर गई।
तुरंत सारे पत्र राजा के समक्ष खोले गए, राजा ने सोचा , विरोध के स्वर उबरने लगे, विरोधी सक्रिय हो गए, किन्तु ये क्या? सभी पत्रों में एक ही बात लिखी थी "राजा जी, आप शुल्क भले से 10 से 15 रुपये कर दो, किन्तु जूते मारने वालों की संख्या बढ़ा दीजिये हुज़ूर, जूते खाने वालों की कतार बेहद लंबी होने के कारण ऑफिस जाने में बहुत देर हो जाती है।
अब सोचिये ऐसी भक्ति, समर्पण, त्याग की भावना होगी क्या वहां सम्भव है कि कोई यह सवाल पूछ सके कि देशहित में आप जो भी फैसले लेंगे उचित ही होंगे मगर कच्चे तेल की कीमतें कम होने के बाद भी पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इतना उछाल हो रहा इसका क्या कारण है?

पम्मी कुमारी - रुन्नीसैदपुर, सीतामढ़ी (बिहार)

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