हथिनी और हैवानियत - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"

पानी में तड़प कर, जान दिए जाने पर, 
साथी हाथी शोक मनाते, खड़े वहां पर।

हाथी अपनी सूंड से, स्पर्श करता रहा।
संवेदना प्रकट! मौन श्रद्धांजलि देता रहा।

हथिनी मार दी गई, आखिर क्यों?क्या?
अपने व शिशु को बचाने का हक नहीं।

करते हैं क्यों अत्याचारी, ऐसे यत्न और तंत्र।
 इस दुर्लभ-प्रजाति को, नष्ट करने का षड्यंत्र।

शायद हाथी के दांत, मौत का कारण बना।
माफिया,स्मगलिंग , मौत का कारण बना।

निंदा करनी चाहिए, कुत्सित विचार- वानों की।
जान तो जान है, जान जानी चाहिए हैवानों की।

मादा हाथी की व्यथाबच्चे का वियोग, 
कितना दर्द झेला होगा, दिया विषैला रोग ?

भाप से छू जाता है हाथ, तड़पते हैं लोग,
हया, शर्म नहीं, क्यों खिलखिलाते हैं लोग।

कितना तड़पी होगी? जब फटा होगा बम।
अनजान वाणी, न महसूस कर पाएंगे हम।

शैतानों को सजा, दिलवा कर लेंगे दम।
भविष्य में ना हो फिर ऐसा, जघन्य कर्म।

प्रशासन को चाहिए करना कानून में सुधार।
कानून बना संरक्षित करें एवं करें प्यार।

हाथी पालतू होते हैं , तो वह जंगली भी, 
छेडे़ बिन नहीं होते , हिंसक जानवर भी 

प्यार दो दुलार दो, बदले में सवारी लो,  
जानवर वफादार हैं, अपने में सुमारी लो।


दिनेश कुमार मिश्र "विकल" - अमृतपुर , एटा (उ०प्र०)

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