ये चाँद की सरगोशियां - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला



ये चाँद की सरगोशियां ,
ये   रात की  तन्हाइयां ।
हर तरफ बजने लगी अब
याद    की  शहनाइयां ।
ये ख्वाब की  अंगड़ाइयां ,
ये  दर्द  की   दुश्वारियां ,
हर  तरफ  फैली हुई ,
ये प्यार की  रुसवाइयां ।
हर तरफ बजने लगी अब
याद  की   शहनाइयां।
ये रूह  की बेचैनियां ,
दीदार  की  बेताबियाँ
हैं मुझे  आवाज देती ,
ये यार  की बेबाकियां ,।
हर  तरफ बजने लगी अब
याद   की  शहनाइयां ।
तड़पा  रही मायूसियां ,
दिलदार की  खामोशियाँ
जान ले  लेंगी  मेरी ये
इकरार  की  नादानियां ।
हर तरफ बजने लगी अब
याद  की  शहनाइयां ।

सुषमा दीक्षित शुक्ला

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