शिखर - कविता - गौतम कुमार

ठान लिया है शिखर पर , पहुँचने को हमने।
ना  पाँव   देंगे  कभी  , दलदलों  में  जमने।।

            हौसलों को बुलंद करके,
            नित आगे हमें बढ़ना है।
            बाधाओं को रौंदकर हमें,
            उस शिखर पर चढ़ना है।।

अंतर्मन  की  ऊर्जा  को , ना देंगे हम कमने।
ठान लिया है शिखर पर , पहुँचने को हमने।।

            मेरे  चेहरे पर मुस्कान  होगा ,
            कदमों में सारा जहांन होगा।
            हर   इच्छा  पूरी  होगी  मेरी ,
            जो दिल में मेरा ईमान होगा।।

बाधाएँ नजर ना आयेगी , मेरे नजरों के सामने।
ठान लिया  है शिखर  पर  , पहुँचने  को हमने।।       

गौतम कुमार
बारीचक ,मुंगेर (बिहार)

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