चूड़ियाँ - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


माँ   बहनें    वधू  तनया , खनकती   हाथ   चूड़ी   से।
प्रिया   हँसती   लजाती  सी  सजन  मनहार  चूड़ी से।
लगा   बिंदी   सजी   मेंहदी  पहन   चूड़ी चहकती  है।
ख्वावों  की   सजा  महफ़िल  चूड़ियों  से दमकती है।

चली शीतल हवा फागुन , अवनी कलसी महकती है।
घने बादल खुले अम्बर  बिजलियाँ चूड़ी चमकती  है।
सागर की लहरें सलिल निर्मल नदियाँ पा दमकती हैं।
चातक सी प्रिये प्यासी चूड़ियाँ सज आश मचलती है। 

चूड़ियाँ गहने  सुहागन की  मनोहर चित्त साजन की।
माँ सुना लोरी हृदय टुकड़े  खनकाती हाथ की  चूड़ी। 
फुदकती  सी  इतराती  आ   मुदित  बेटी पहन चूड़ी।
कलाई  रेशमी  डोरी  भाई  बहन  आयी  पहन चूड़ी।

सजावत  मात्र न समझें  है  नारी   सम्मान  ये  चूड़ी,
साधन नित  सुहावन तनु  मनोरम  दिलदार  ये चूड़ी,
मनोभावन न है   केवल , सुहागन  प्रतीमान  है चूड़ी,
मधुर   सुन्दर  सजन मनहर प्रिया उपहार  ये   चूड़ी। 

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नयी दिल्ली

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos