आज पिंजरे में ही सुरक्षित है - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"

आज पिंजरे में ही सुरक्षित है,
संरक्षित है अब ये मानव।
पंछी सक्षम हैं, प्रातःचार बजे से ,
पक्षियों का चहचहाना,
पंख फड़-फड़ाकर जागना,
फलक में उच्च उड़ान भरना,
सीमाओं को भी ना मानना ।
उन्हें लांघ जाना आज मानस-
का शहर की सड़कों पर,ना दिखाई देना,
पशुओं का कोतूहल बढ़ना, उनका
चहल कदमी करना,निर्भय  विचरना,
ना डर है इन्हें, क्या करेगा कोरोना, 
दम है तो  करो ना, हमें नहीं है डरना।।

दिनेश कुमार मिश्र "विकल"

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