स्त्री - कविता - आदित्य रहब़र


उसके हाथों में हँसुआ देखा एक दिन 
वो किसानी करती हैं उसने बताया
उन्हीं हाथों में जब कलमें देखता हूँ 
तो मैं उन हाथों की सुंदरता का 
कयास लगाने में असमर्थ पाता हूँ खुद को ।

एक ही हाथों में 
कभी कलमें
कभी किताबें 
कभी हँसुएं  
और जब उन्हीं हाथों से 
अक्सर रोटी बनाते देखता हूँ 
तो मुझे भान होता है 
कि सृष्टि ने सभी परिस्थितियों, 
सभी गुणों,सारी संभावनाओं और सभी क्षमताओं का 
एक सम्पूर्ण सार बनाकर 
उसका नाम 'स्त्री' रख दिया होगा । 


आदित्य रहब़र

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