मुफ़लिसों की बस्तियों में ये नज़ारा आम है
धूप को दिन खा गया है बेचरागां शाम है
तप रहा था गात फिर भी जा चुकी है काम पर
कह रही थी चाँदनी कुछ आज तो आराम है
ये दिया है वो दिया है रोटियां पर हैं कहाँ
घोषणा सरकार की हमको करे बदनाम है
चाय जाकर वो पिए है रोज़ लेबर चौक पर
क्या पता मज़दूर को किस दूध का क्या दाम है
गेट के भीतर नहीं जो जा सके इस्कूल के
आपकी हर योजना उनके लिए बेकाम है
इक कलम औ' कुछ किताबें दे नहीं सकते अगर
झोंपडी पे क्यों लिखा अम्बेडकर का नाम है
धार्मिक है ये नगर अब जी यहाँ लगता नहीं
है छुरी पहलू में ''भोला'',मुँह में जिसके राम है
मनजीत भोलाकुरुक्षेत्र, हरियाणा