मजदूर - कविता - जितेन्द्र कुमार


अंततः उससे पूछा मैंने,
आपको क्या बीमारी है?
बड़े अदब से वो बोला,
साहब! भूख  भारी  है।
बार-बार यह सताती  है,
नींद बगैर शब जाती है।
कहीं से दो टूक जो मिले
तब यह औ' जग जाती है।
हमारी मंजिले अभी दूर हैं,
साहब! हम मजदूर हैं...

राह देखते होंगे घर पर
माँ, बीवी औ' नन्हे बच्चें
दाने-दाने को मोहताज हैं,
मिलते पग-पग पर गच्चे।
हमारे मालिक का रहम नहीं,
स्वेद बहाते, हमें सहम नहीं।
आज खाते, कल को गाते,
जल जाते काश ऐसी बही।
विधि भी हमपे मगरूर है?
साहब! हम मजदूर हैं....

जितेन्द्र कुमार

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos