आया हूं - कविता - मयंक कर्दम


मैं   माटी  का  चंदन,
भर   आंसू  रोया  हूं ।
इस पुतले की दुनिया में,
जान डालने आया हूं।।

खामोशी को सींचा मैंने,
पापी पर बन कर साया हूं।
शब्दों को बढ़ा खींचा मैंने,
नारी  अस्त्र देने  आया हूं।।

गिरे  दुष्कर्मी  मानव  से,
विरोध आवाज उठाया हूं।
नन्ही  बच्ची  पुष्प कली से
रक्षा    राखी   पहनाया हूं।।

लेखनी   है   यौवन   मेरी,
बहन आजा़ब भरने आया हूं।
आईना  देख   स्वयं    दरिंदे,
मैं नारी की पौषाक छाया हूं।।

पुकार सुनकर बहरे बैठे,
अब मैं  समझ  पाया हूं।
सरदारों की महफि़ल में,
सरकार  हटाने  आया हूं।।

रोते  देखा नारी  को मैंने,
मां के आगोश में सोया हूं।
पूछा   आंसू  आंखों   से ,
दुष्ट रावण जलाने आया हूं।।

काले बादल की आंधी में,
चट्टानों  को  झुकाया  हूं।
इस पुतले  की दुनिया  में,
जान   डालने   आया   हूं।।

मयंक कर्दम

मेरठ (उ०प्र०)

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