संदेश
तू ज़िंदा है! - कविता - संजय राजभर 'समित'
उठ चल! और लड़ गर साँस लेता हुआ तू ज़िंदा है तो याद रख तुझे आगे बढ़ना ही पड़ेगा, गर थक गया है तो माँझी को देख गर अंधा है तो लुइ ब्रेल को…
सपनों की राह में संघर्ष - कविता - रूशदा नाज़
क्यूँ, क्या, कैसे कहाँ तक? इन सवालों में उलझा विद्यार्थी कल्पनाओं में ढूँढ़ता है यर्थाथ अपने सफ़र में भटकता हुआ, थकता हुआ, हारता हुआ किन…
फिर से नवसृजित होना - कविता - कमला वेदी
मनुष्य को जवाँ और ज़िंदा बनाए रखती है छोटी-छोटी ख़ुशियाँ छोटे-छोटे एहसास जीने को ज़रूरी है थोड़ी-सी चाह थोड़ी-सी प्यास हास-रोदन के अनगिनत ए…
आत्म संवाद - कविता - अंजू बिजारणियां
ये जवानी का दौर, दूसरी ओर सफलता प्राप्ति का शोर। पड़ रहा मुझ पर मेरा ही ज़ोर। अपने आप में रहना भी चाहूँ, निकलना भी चाहूँ, छाया कोहरा चा…
चल! इम्तहान देते हैं - कविता - आलोक कौशिक
भय को भगाकर पंखों को फैला कर हौसलों को उड़ान देते हैं चल! इम्तहान देते हैं तू नारी है या है नर दिखा अपना हुनर श्रेष्ठ को सम्मान देते ह…
घायल सिंह दहाड़ उठो - कविता - दिवाकर शर्मा 'ओम'
अपनी मर्यादा में रहकर, शोषण के घूटों को सहकर प्रश्नों का प्रतुत्तर देने, अपने हक़ को वापस लेने, चिंगारी को ज्वाल बनाकर, ख़ुद को कुंदन सा…
न हो आशाएँ, जहाँ न हो विश्वास - कविता - राजेन्द्र कुमार मंडल
न हो आशाएँ, जहाँ न हो विश्वास, न उन्माद जीवन में फिर क्या आभास? ध्येय अगर जीवन की हो मोक्ष प्राप्ति की, हे प्राणी कर्मगुणी, त्याग मोह …
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