संदेश
विधा/विषय "धरती"
व्यथा धरा की - तपी छंद - संजय राजभर "समित"
शुक्रवार, अक्तूबर 23, 2020
चीख रही धरती। कौन सुने विनती।। दोहन शाश्वत है। जीवन आफत है।। बाढ़ कभी बरपा। लांछन ही पनपा।। मौन रहूँ कितना! जख्म नही सहना।। मान…
सावन पर्व है धरती के सिंगार का - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
रविवार, जुलाई 12, 2020
फुहारों के रूप में भक्ति और श्रृंगार मिश्रित अमृत बरसता है। इस महीने में सावन की फुहारें जीवन में नया रंग भर देती हैं। चारों…