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विधा/विषय "तपी छंद"
व्यथा धरा की - तपी छंद - संजय राजभर "समित"
शुक्रवार, अक्तूबर 23, 2020
चीख रही धरती। कौन सुने विनती।। दोहन शाश्वत है। जीवन आफत है।। बाढ़ कभी बरपा। लांछन ही पनपा।। मौन रहूँ कितना! जख्म नही सहना।। मान…
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