जो न समझते पाक मुहब्बत - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'

जो न समझते पाक मुहब्बत - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल' | Ghazal - Jo Na Samajhte Paak Muhabbat. प्रेम पर ग़ज़ल, Love Ghazal
जो न समझते पाक मुहब्बत, 
उन ख़ातिर है ख़ाक मुहब्बत। 

जिन्हे तजुर्बा नहीं इश्क़ का, 
उनको रहती ताक मुहब्बत। 

नफ़ा खोजते हैं जो इसमें, 
उनकी है चालाक मुहब्बत। 

जो ख़ुद में उलझे रहते हैं, 
होते देख अवाक मुहब्बत। 

करते हैं जो सच्चे दिल से, 
जग में उनकी धाक मुहब्बत। 

जिसने इसको समझा 'अंचल', 
करते वो बेबाक मुहब्बत। 


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