प्रथम पूजा के तुम अधिकारी,
मानव देह पर गज मुख धारी।
तेरी लीला है सबसे न्यारी,
मूषक पर तुम करो सवारी।
लड्डुन का तुम भोग लगाते,
मिष्ठान्न, तुम्हे अति भाते।
जो नर तुझको रोज़ ध्याते,
रिद्धि-सिद्धि का, आशीष पाते।
देवों ने जब भी, तुम्हे पुकारा,
आकर तुमने, दिया सहारा।
संकटों से फिर उन्हे उभारा,
दुष्टों को रण, बीच संहारा।
हे! कार्तिकेय के लघु भ्राता,
बहुत प्रिय है, तुम्हे गौरी माता।
जो नर तेरा, ध्यान लगाता,
उर आंनद से, मन भर जाता।
कार्तिकेय के जा, राजद्वारे,
लक्ष्मी संग, लाल बाग पधारे।
धन-धान्य से, भरे भंडारे,
बिन कछु मन में, भाव विचारे।
बुद्धि के हो, तुम ही दाता,
तुम्हारे ध्यान से, सौम्य आता।
जो नर तुझको, रोज़ ध्याता,
सब कष्टों पर, विजय वह पाता।
जय गजानन, गौरी नंदन,
बारम्बार है तुझको वंदन।
दूर करो तुम, सारे क्रंदन,
हे विध्नकर्ता, तुझको वंदन।
गणेश भारद्वाज - कठुआ (जम्मू व कश्मीर)