कुछ गाने को मन करता है,
पर ज़ुबान पर ताले हैं।
आशाओं के नील गगन में,
भरे हौसलों का तन है,
घोर अमावस अँधियारी है
जलता दीपक सा मन है।
चारों ओर भूख बीमारी
लाचारी बेगारी है,
एक तरफ़ उत्सव उम्मीदें
एक तरफ मन मारी है।
अपने ही शव को यूँ ढोते,
कितने हिम्मत वाले हैं।
अनगिन साँसे रुकी हुईं हैं
थामे जीवन डोर सखे,
शोषण के हाटों में बिकते
आदर्शों के ढोर सखे।
मरघट का संगीत बज रहा
आज गली चौराहों पर,
घोर अमावस भरे ठहाका
अंतर्मन की राहों पर।
सृजन विसर्जन की दुनियाँ में,
अभिव्यक्ति के लाले हैं।
मत डर ये मन बढ़ता चल तू
भले तमस ये घोर सखे,
रात भले ये काली-काली
आगे जीवन भोर सखे।
रुकना नहीं निरंतर चलना
जीवन चलता डेरा है,
कंटक शूल कठिन हैं राहें
आगे सुखद सबेरा है।
आएँ कितने प्रलय झकोरे,
पर हम भी मतवाले हैं।
सुशील शर्मा - नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)