हम बंजारे हैं - गीत - श्याम सुन्दर अग्रवाल

हम बंजारे हैं - गीत - श्याम सुन्दर अग्रवाल | Hindi Geet - Hum Banjaare Hain - Shyam Sundar Agarwal Geet
नहीं इजाज़त रुकने की, अब सफ़र करें हम बंजारे हैं, 
ना अपना कोई गली गाँव, ना कोई देहरी द्वारे हैं। 
     
संग साथ संगी साथी, ये सब हैं मन के बहलाव, 
बंजारों की कैसी बस्ती, बंजारों के कैसे गाँव, 
भ्रम की साँझ चली आती तो, हो जाता कुछ पल ठहराव, 
और सबेरा होते ही, फिर चलने लगते हैं पाँव, 
हम ऐसे दिनमान न जिनके कोई साँझ सकारे हैं, 
ना अपना कोई गली गाँव, ना कोई देहरी द्वारे हैं। 
        
पहले तो हम तट पर ही थे, सागर से अखियाँ मींचे, 
मौजों ने आकर छेड़ा तो, कैसे रहते मन भींचे, 
लहरों के आमंत्रण पर हम, मझधारों तक जा पहुँचे, 
उतना ही हम फँसे भँवर में, हाथ पाँव जितना खींचे, 
हम ऐसे जलयान कि जिनसे रहते दूर किनारे हैं, 
ना अपना कोई गली गाँव, ना कोई देहरी द्वारे हैं। 
        
स्वप्न बने हम उन नयनों के, जो नयना जग जग जाते, 
दर्द बने उन गीतों के जो, किसी अधर तक ना आते, 
पथिक बने हम ऐसे पथ के, पाँव जहां थक थक जाते, 
दीप बने जिन ख़ातिर उनके, 'स्नेह' बिना बुझ बुझ जाते, 
हम ऐसे मेहमान न जिनके कोई पंथ निहारे हैं, 
ना अपना कोई गली गाँव, ना कोई देहरी द्वारे हैं। 
       
तन भीगा न मन भीगा, जाने कितने सावन आए, 
गँध भरी न रंग भरे, जाने कितने फागुन आए, 
कैसे अश्रु रुकें आँखों के, कैसे रोता मन गाए, 
बस पतझर ही पतझर लाए, जितने भी मौसम आए, 
हम ऐसे उद्यान न जिनमें आती कभी बहारें हैं, 
ना अपना कोई गली गाँव ना कोई देहरी द्वारे हैं। 


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