इठलाए मैया की गोदी, ब्रज का राज दुलारा।
ऐसा दृश्य मनोहर था, लगा आँख को प्यारा॥
चोरी-चोरी चुपके-चुपके, माखन खाते जाते,
टुकुर टुकुर मैया को देखे, नैन बड़ा मटकाते।
नंद यशोदा देख-देख कर, हर्षित होते जाते,
बाहों में लेकर कान्हा को, प्रेम उड़ेले सारा।
ऐसा दृश्य मनोहर...
वृंदावन से धेनु चराकर, घर में कान्हा आए,
गाँव की सारी गोपियों को, अपने द्वारे पाए।
चोरी का इल्ज़ाम लगा तो, मन ही मन घबराए,
छड़ी हाथ में ले मैया ने, गोपाल को पुकारा।
ऐसा दृश्य मनोहर...
बोली यशोदा की सहेली, मिट्टी कान्हा खाए,
मैं रोकी तो बड़ी-बड़ी सी, आँखे मुझे दिखाए।
मैया आँचल से कान्हा का, मुख जब साफ़ कराए,
उनको कान्हा के मुख में तब, दिखा ब्रह्मांड सारा।
ऐसा दृश्य मनोहर...
शरारतों का अंत न पाकर, ग़ुस्सा करती माता,
ओखल से बाँधूगी तुझको, कहती जाती माता।
बाँध न पाई कान्हा को जब, सोच में पड़ी माता,
तब कान्हा ने ख़ुद को बाँधा, अद्भुत दिखा नज़ारा।
ऐसा दृश्य मनोहर था...
कमल पुरोहित 'अपरिचित' - कोलकाता (पश्चिम बंगाल)