डॉ॰ नेत्रपाल मलिक - अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)
आवाज़ फ़ासले भी कहती है - कविता - डॉ॰ नेत्रपाल मलिक
बुधवार, अगस्त 09, 2023
क्षमा कर देना
दे जाता है एक अधिकार शक्ति का अहसास
और माँगना
खड़ा कर देता है पायदान के छोर पर
क्षमा उस वृक्ष की कोपलें हैं
जिसकी जड़ों में
डार्विन के विकासवाद की मिट्टी है
उस पर धन्यवाद के फूल भी खिलते हैं
उत्तरजीविता सहअस्तित्व को नकारती है
क्षमा की तुरपाई में
एक धागा छोटा रह जाता है
और
धन्यवाद की शालीनता में
आवाज़ कभी-कभी फ़ासले भी कहती है।
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