समीर द्विवेदी नितान्त - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)
मैं एक लम्हा भी ख़ुद से न मिल सका तन्हा - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
शुक्रवार, अक्टूबर 22, 2021
अरकान : मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
तक़ती : 1212 1122 1212 22
मैं एक लम्हा भी ख़ुद से न मिल सका तन्हा,
वो मेरे साथ रहा जब भी मैं हुआ तन्हा।
पनाहगार रहा जो तमाम नस्लों का,
बिछुड़ के पत्तों से वो पेड़ है खड़ा तन्हा।
ऐ चाँद तारों ज़रा तुम भी साथ आ जाओ,
अँधेरी रात से जुगनू ही लड़ रहा तन्हा।
वो जिसके पीछे कभी कारवाँ चलते थे,
वो आज राह में बेबस खड़ा मिला तन्हा।
वफ़ा की राह पे चल तो रहा है तू लेकिन,
ये तय है ख़ुद को तू जल्दी ही पाएगा तन्हा।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
सम्बंधित रचनाएँ
कैसे आवाज़ हमारी वो दबा सकते हैं - ग़ज़ल - अरशद रसूल
एक दो-दिन का है ख़ुमार, बस, और - ग़ज़ल - रोहित सैनी
मुझे देखकर अब उसका शर्माना चला गया - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
मैंने जीना सीख लिया है - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
मैं एक लम्हा भी ख़ुद से न मिल सका तन्हा - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
तन्हा ग़ज़ल - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर