संदेश
सोने के पिंजरे इन्हें रास न आते हैं - कविता - रजनी साहू 'सुधा'
तन्हाई के मौसम में पंछी राग सुनाते हैं, सन्नाटों की पीड़ा को स्वर में गुनगुनाते हैं। प्रीत निभाने के ये सब राज़ छुपाते हैं, बुलंदी के …
फिर फिर जीवन - कविता - रोहित सैनी
अगर कभी तुम्हें लगे अकेले ही पर्याप्त हो तुम अपने लिए जब लगे अकेले जीवन जिया जा सकता है, मुश्किल नहीं! तब अपनी जान का पूरा दम लगाकर फि…
संघर्ष का सूर्योदय - कविता - सुशील शर्मा | मज़दूर दिवस पर कविता
धूप की पहली किरण, उजागर करती अनगिनत चेहरे, जो झुकते हैं धरती पर, उठाते हैं भार, बनाते हैं राहें। हाथों में खुरदरापन, धमनियों में बहता …
स्वयं के भीतर शिव को खोजूँ - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
स्वयं के भीतर शिव को खोजूँ, ख़ुद वैरागी हो जाऊँ। मोह-मृग की माया त्यागूँ, शून्य में लय हो जाऊँ॥ मन-वेदी पर दीप प्रज्वलित, शुद्ध प्राण क…
फिर से नवसृजित होना - कविता - कमला वेदी
मनुष्य को जवाँ और ज़िंदा बनाए रखती है छोटी-छोटी ख़ुशियाँ छोटे-छोटे एहसास जीने को ज़रूरी है थोड़ी-सी चाह थोड़ी-सी प्यास हास-रोदन के अनगिनत ए…
तुम न बदलना - कविता - श्वेता चौहान 'समेकन'
तुम न बदलना, वक्त भले बदलता रहे। इश्क़ का चिराग़ आँधियों में भी जलता रहे। न मिल सको हर रोज़ तो कोई बात नहीं! इतना सा दिख जाओ कि निगाहों क…
मकड़ी - कविता - प्रवीन 'पथिक'
अपने कटु मनोभावों का जाल, बुनती हुई मकड़ी! सोद्देश्य– निमग्न अवस्था में कुएँ के अंतिम छोर तक; पहुॅंच गई है। अप्रत्याशित रूप से, वह ख़ुश…
आईना झूठ नहीं बोलता - कविता - रत्नेश शर्मा
सभी कहते हैं आईना झूठ नहीं बोलता इन्सान हो या पर्वत-पहाड़ बेदाग़ चेहरा हो या दाग़दार हू-ब-हू दर्शा देता है। इसीलिए, नए दौर के लोग आईना न…
जागृति - कविता - भजन लाल हंस बघेल
सूर्योदय से पहले चिड़िया चहचहाई, उठो! जागो! यह संदेशा लाई। चल रही मंद-मंद शीतल पवन, अति आनंदित! रोमांचित! तन और मन। पीपल के पत्तों की …
मुझे तुमसे कुछ कहना है - कविता - ब्रज माधव
देखो बच्चे बड़े हो गए हैं घर से बाहर चले गए हैं मेरे पास समय ही समय है टीवी अख़बारों से मन भर गया है दफ़्तर में भी आज छुट्टी है पास बैठ त…
गंगा की लहरों में - कविता - अदिति वत्स
ऋषिकेश, मैं तुमसे मिलने आई थी, पहली बार, जैसे कोई तीर्थयात्री अपनी आत्मा की खोज में किसी अनजान मंदिर की ओर भटक जाए। तेरा नाम मेरे कानो…
पाँखी - कविता - मयंक द्विवेदी
ओ पिंजड़े के पाँखी तुम क्या जानो ये नील गगन ओ पिंजड़े के पाँखी तुम क्या जानो ये मस्त पवन। तुमने देखा है केवल विवश हुई इन आँखों से तुमन…
यंत्र - कविता - मदन लाल राज
सुबह का होना चिंताओं का समीकरण। फिर शुरू होती है, घटा-गुणा, भाग-दौड़। लगातार गतिशीलता बढ़ाती है दिल की धड़कन। मशीनों की खटखट और धुआँ स…
हुआ क्या? - कविता - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
खुली आँख थी या कि तुम सो रहे थे, कहीं उड़ गया था तुम्हारा सुआ क्या? घटना घटी देखकर पूछते हो! हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या?? …
दर्शन की छाया - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी'
जब एक व्यक्ति धूप में चलते-चलते थक जाता है तो वह फिर एक वृक्ष की छाँव में बैठ जाता है शान्ति और सुख का अनुभव करता है। वह व्यक्ति — तर्…
पता ही नहीं चला - कविता - प्रवीन 'पथिक'
दो दिलों का मिलन, कब साँसों की डोर बन गई? पता ही नहीं चला। जीवन की ख़ुशनुमा शाम, कब सुहावनी रात बन गई? पता ही नहीं चला। उसी शाम तो तुमन…
मझधार - कविता - श्वेता चौहान 'समेकन'
मैं प्रेम की कश्ती हूँ, मेरा जीवन मझधार में है! हे प्रिय! तुम माँझी बनो, हमें चलना उस पार है! प्रेम न ठहरे सागर जैसा, कलकल-छलछल बहता र…
रंग न मन मोहा - कविता - गौरव ज्ञान
श्याम का रंग, साम क्यों? बाबरी बन राधा, मीरा से पुछी, मीरा बोली– ना जानु मा साम रंग, ना जानु मा गोरी, मोह तो मीरा हूँ दर्श की प्यासी,…
अंतर्मन की खोज - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
खोज रहा हूँ ख़ुद को भीतर, मौन लहर में गूँज समाई। भाव शिलाएँ चुपचाप खड़ीं, बूँद-बूँद रसधार बहाई॥ अंतःपुर की जाली झाँके, स्मृतियों की धूप…
है नारी हर युग में युग निर्माता - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया
ममत्व भाव पाने को जिसका, सदैव आतुर रहे स्वयं विधाता। शील, शक्ति, सौंदर्य समन्विता, है नारी हर युग में युग निर्माता। स्नेह सुधा बरसा कर…
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