संदेश
थोड़ी-सी रोशनी - कविता - अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श'
पलकों पर ठहरी नमी अब शब्द नहीं खोजती, बस रिसती है अनकहे अपराध-भाव की तरह। भीतर का शोर इतना भारी हो गया है कि मौन भी टूटकर गिरता है चूर…
अधूरी कविताएँ - कविता - प्रवीन 'पथिक'
आख़िरी साँसों तक पूर्ण नहीं होता जीवन का उपन्यास। कुछ शेष रह जाती हैं, प्रेम कविताएँ; छंद नहीं बनते उस क्षण के, टूट जाती हैं महत्वाकांक…
मैं बेचारा तन्हा अकेला - कविता - बाल कृष्ण मिश्रा
मैं बेचारा तन्हा अकेला भीगी राहों पर ढूँढ़ रहा, ख़ुद को, कहीं। सड़कें भीगीं, शहर धुँधला, आसमान में घना कोहरा। भीगे आँखों से छलके यादों क…
अनुभूति और अभिव्यक्ति - कविता - द्रौपदी साहू
बाबूजी! ये घर, जो घर लगता था अब कितना सूना है! आपकी याद में जब गहन चिंतन में डूब जाती हूँ तब मन में प्रश्न उठता है! आख़िर जीवात्मा जाते…
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला - कविता - धीरेन्द्र पांचाल
मैंने अपनी जान हथेली पर उसके कर डाला इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला काश की मिल पाता मैं उनसे हाल दिलों के गाता काश की इस बंजर धर…
ईश्वर और नैतिकता - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
ईश्वर है या नहीं, कोई नहीं जानता। कुछ ईश्वर के अस्तित्त्व को मानते हैं और कुछ ईश्वर के अस्तित्त्व को काल्पनिक कहकर नकार देते हैं। लेकि…
विवशता - कविता - देवेश द्विवेदी 'देवेश'
विवश था मैं, विवशता की परिधि से बाहर आने में। विवश था यह सोच कि जब खेलते थे खेल बचपन में आँख मिचौली का, बाँध पट्टी आँखों पर कई परत की,…
ग़रीब - कविता - आचार्य प्रवेश कुमार धानका
अमीर सुख से सो रहा है पैसों के बीज बो रहा है धन पैदा बहुत हो रहा है ग़रीब दु:ख से रो रहा है, ग़रीब दु:ख से रो रहा है। रहता चिंतित और बेच…
आँचल - कविता - प्रशांत
बूँदें गिर रही हैं, मीठी हवा... उसके आँचल से निकली हो जैसे। आकर कान में एक मीठा राग घोलती, कुछ कमियाँ बताती है मेरी... लेकिन उसमें शिक…
एक ख़ुशनुमा शाम - कविता - प्रवीन 'पथिक'
इसी नदी के किनारे एक ख़ुशनुमा शाम सूर्य लालिमा लिए छिप रहा था। संध्या के आँचल में, चिड़ियों का कलरव, झिंगुरों की झंकार दूर एक झाड़ी से …
लिखना - कविता - पंडित विनय कुमार
बार-बार कुछ लिखने के बाद बदल जाता है मन का भाव जिसमें होते हैं विचार जिसमें होती हैं सोची गई कल्पनाएँ हर एक कल्पना में होता है सृजन का…
तुम्हीं तो हो - कविता - प्रवीन 'पथिक'
हर सुबह मेरे ख़्वाबों में आकर मुझे अपनी सुगंधों से भर देने वाली तुम ही तो हो। तुम्हारा आहट पाकर ही तो, पंछी बोलते हैं, फूल खिलते हैं, भ…
धर्मयुद्ध - कविता - विभान्शु राय
जब कुरुक्षेत्र की रणभूमि में, लड़ने को सब तैयार हुए, अस्त्र-शस्त्र से सज्जित होकर, योद्धा रथ पर सवार हुए॥ एक तरफ़ थी कौरव सेना, और कई श…
हिम्मत - कविता - अवनीश चंद्र झा
आ ज़रा, पास तो आ मेरे गले लगा मुझे, मुस्कुरा तो सही अपना हाथ, मेरे हाथ में रख एक बार नज़र मिला तो सही ये युद्ध का मैदान है पगले एक बार …
प्रेम रहा भरपूर - कविता - द्रौपदी साहू
आँधी आई चला गया वो, छोड़ प्रिये को दूर। इक था राजा इक थी रानी, प्रेम रहा भरपूर॥ कैसे ढूँढे़? किससे पूछे? पता बताए कौन? रुकती ना आँसू आ…
यही पल तुम्हारा है - कविता - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
यही पल तुम्हारा है जो पल जी रहे हो, यही पल तुम्हारा है। कल का किसको पता! व्यर्थ इसकी चिंता कर, ज़िन्दगी गॅंवा रहे हो। ख़्वाहिशें बहुत …
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