संदेश
योग - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
योग ही से जीवनी है योग ही देता सहारा। प्रात उठ कर श्वास खींचो और फिर बाहर निकालो। करो प्रणायाम प्रतिदिन नियम यह अविरल बनालो। आयुष्य लम…
अकेले रहे तो समझ आया - कविता - नाजिया
अकेले रहे तो समझ आया, सब कुछ तो था, बस कोई अपना नहीं था। ख़ामोशी ने दर्द का राज़ बताया, और तन्हाई ने ख़ुद से मिलवाया। टूटे ख़्वाब भी रास…
तुम लौटी तो, पर यूँ लौटना नहीं था - कविता - अदिति
मैं तन्हा था… लेकिन ख़ुश था — क्योंकि तुम्हारे लौटने की उम्मीद मेरे पास ज़िंदा थी। इंतेज़ार एक इबादत बन चुका था हर पल, हर घड़ी तुम्हारा…
हिंदी का लेखक - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी
हिंदी के लेखक कभी सही समय पर नहीं बोलते। वे तब चुप रहते हैं, जब एक पूरी जाति को उजाड़ा जा रहा होता है, जब संविधान की पीठ पर सत्ता अपनी…
मेरा अनुपात - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
मेरा अनुपात, तुमसे, सामंजस्य नहीं बिठा पाता। राहत की बात है, कोई शून्य नहीं हो पाता। बिखरी हुई सोच, और उनमें बिखरा व्यक्तित्व, अपने वि…
जो पहले था आज नहीं है - कविता - बिंदेश कुमार झा
आसमान आज भी बरस रहा है, कल पानी बरसा रहा था, आज आग है। आसमान भी काला है, चंद्रमा भी सफ़ेद चादर ओढ़ा होगा, आज उसमें भी दाग़ है। धरती का र…
अधूरे शब्द - कविता - प्रवीन 'पथिक'
धुंधलका होते ही बनने लगती विरह की कविताएँ एक छवि तैर जाती है ऑंखों में दिनभर की बेचैनी, आक्रोश, तपन केंद्रित हो जाती है– उस विरही कवित…
पिता: एक अनकहा संवाद - कविता - सुशील शर्मा
पिता कोई शब्द नहीं है, न ही कोई सम्बन्ध भर। वह तो एक अनदेखा प्रतिबिम्ब है जिसे हम तभी पहचानते हैं जब वह ओझल हो जाता है। वह जन्म नहीं …
अंतिम यात्रा - कविता - राजेश राजभर
आत्मा अविजित अमर है– सर्वविदित है नश्वर काया! अंतिम सत्य– है "मृत्यु" प्रिये, मैं कहाँ इसे झूठलाया! बंधन मुक्त नहीं थे मुझसे…
जाल - कविता - मदन लाल राज
मकड़ी सिद्धहस्त है, ख़ुद जाल बनाने में। फिर तरकीब लगाती है, शिकार को फँसाने में। अपने रसायन से वो बेतोड़ जाल बुनती है। पकड़ने को कीड़े…
तू ज़िंदा है! - कविता - संजय राजभर 'समित'
उठ चल! और लड़ गर साँस लेता हुआ तू ज़िंदा है तो याद रख तुझे आगे बढ़ना ही पड़ेगा, गर थक गया है तो माँझी को देख गर अंधा है तो लुइ ब्रेल को…
ख़ुद को ढूँढ़ने की राह - कविता - रूशदा नाज़
हर शख़्स को यादों में रोते देखा है व्यथित होकर ख़ुद को सम्भालतें देखा है ख़ुद से प्यार करने की सलाह सब देते है प्रेम में बिखरने के बाद ये…
सिन्दूर के बदले - कविता - पवन कुमार मीना 'मारुत'
युद्ध यादें दे जाता है कड़वी-कड़वी यादें। ले जाता है साया दुधमुँहें बच्चों के सिर से बाप का। और दे जाता है सिन्दूर के बदले हँसती-मुस्कुर…
कहने को अपने - कविता - सुशील शर्मा
भीड़ में भी क्यों, दिखती है दूरी। अपनों को अपना कहना है भारी। शब्दों के धागे, रिश्तों की माला, पर मन के भीतर, दिखता है हाला। मुश्किल घड़…
सहर को सहर नहीं कहता - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
परहेज़ करता है वह खिलखिलाने से, कि अपने मन की सरे-आम बताने से। यूँ चुप रहता है और आँखों से ख़ूब बोलता है, जाने क्या आता है ज़ुबाँ पे पैमा…
साक्ष्य - कविता - बृज उमराव
शिलालेख प्रस्तर पट छतरी, दीर्घायु पादप चाँद सितारें। देते हैं प्रत्यक्ष गवाही, कभी किसी से वह न हारें॥ परिवर्तन है प्रकृति प्रदत्त, इस…
प्रकृति प्रेम गमलों में सीमित - कविता - ओम प्रकाश श्रीवास्तव
सकल सृष्टि में संकट छाया, दूषित हुआ समाज। प्रकृति प्रेम गमलों में सीमित, दिखता देखो आज॥ ब्रह्मा ने जब सृष्टि बनाई, रखा सभी का ध्यान। ज…
मैं मौन हो गया - कविता - इमरान खान
मैंने उस लड़की से कहा– 'मैं तुम पर एक कविता लिखना चाहता हूँ!' उस लड़की ने मुझसे पूछा– 'तुम्हारे शब्दों में मेरे होंटों की …
हे ईश्वर! - कविता - नंदनी खरे 'प्रियतमा'
हे ईश्वर! यदि क़िस्मत जैसा कुछ वास्तव में होता है, तो नाइंसाफ़ी बहुत की है तुमने। तुमने क़िस्मत के मामले में, किया है समता के अधिकारों का…
लिखूँ तो मैं लिखूँ क्या - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
लिखूँ तो मैं लिखूँ क्या? जो बोले, पर मौन रहे। जो जल जैसा हो थिर-थिर, पर भीतर ही भीतर बहे। जिसमें रूप न कोई दिखे, ना कोई स्पष्ट रेखा। ज…
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