आवाज़ फ़ासले भी कहती है - कविता - डॉ॰ नेत्रपाल मलिक

क्षमा कर देना
दे जाता है एक अधिकार शक्ति का अहसास
और माँगना
खड़ा कर देता है पायदान के छोर पर

क्षमा उस वृक्ष की कोपलें हैं
जिसकी जड़ों में
डार्विन के विकासवाद की मिट्टी है
उस पर धन्यवाद के फूल भी खिलते हैं

उत्तरजीविता सहअस्तित्व को नकारती है

क्षमा की तुरपाई में 
एक धागा छोटा रह जाता है
और
धन्यवाद की शालीनता में
आवाज़ कभी-कभी फ़ासले भी कहती है।


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