संदेश
बुद्ध: करुणा और प्रज्ञा का संगम - लेख - सत्यजीत सत्यार्थी
भूमिका: चेतना के आलोक में बुद्ध का आह्वान मानव इतिहास के प्रवाह में कुछ व्यक्तित्व ऐसे भी उदित होते हैं जो युगों की सीमाओं को लाँघकर च…
आत्मबोध - गीत (लावणी छंद) - संजय राजभर 'समित'
कोई कठिन जादू नहीं तू, न ही सरल छू मंतर है। इधर-उधर न खोज रे! ख़ुद को, तू अपने ही अंदर है। तू ही चैतन्य, तू ही सत्य, तू शाश्वत ज्योति प…
योग - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
योग ही से जीवनी है योग ही देता सहारा। प्रात उठ कर श्वास खींचो और फिर बाहर निकालो। करो प्रणायाम प्रतिदिन नियम यह अविरल बनालो। आयुष्य लम…
अकेले रहे तो समझ आया - कविता - नाजिया
अकेले रहे तो समझ आया, सब कुछ तो था, बस कोई अपना नहीं था। ख़ामोशी ने दर्द का राज़ बताया, और तन्हाई ने ख़ुद से मिलवाया। टूटे ख़्वाब भी रास…
तुम लौटी तो, पर यूँ लौटना नहीं था - कविता - अदिति
मैं तन्हा था… लेकिन ख़ुश था — क्योंकि तुम्हारे लौटने की उम्मीद मेरे पास ज़िंदा थी। इंतेज़ार एक इबादत बन चुका था हर पल, हर घड़ी तुम्हारा…
हिंदी का लेखक - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी
हिंदी के लेखक कभी सही समय पर नहीं बोलते। वे तब चुप रहते हैं, जब एक पूरी जाति को उजाड़ा जा रहा होता है, जब संविधान की पीठ पर सत्ता अपनी…
रहा हूँ मैं - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
ज़रा-सी बात कहनी थी... ज़रा-सा जर रहा हूँ मैं ख़ुद से मिलने की महफ़िल में सफ़-ए-आख़िर रहा हूँ मैं वक़्त का ही तक़ाज़ा है के बहुत सुलझा-सा हूँ…
मेरा अनुपात - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
मेरा अनुपात, तुमसे, सामंजस्य नहीं बिठा पाता। राहत की बात है, कोई शून्य नहीं हो पाता। बिखरी हुई सोच, और उनमें बिखरा व्यक्तित्व, अपने वि…
जो पहले था आज नहीं है - कविता - बिंदेश कुमार झा
आसमान आज भी बरस रहा है, कल पानी बरसा रहा था, आज आग है। आसमान भी काला है, चंद्रमा भी सफ़ेद चादर ओढ़ा होगा, आज उसमें भी दाग़ है। धरती का र…
अधूरे शब्द - कविता - प्रवीन 'पथिक'
धुंधलका होते ही बनने लगती विरह की कविताएँ एक छवि तैर जाती है ऑंखों में दिनभर की बेचैनी, आक्रोश, तपन केंद्रित हो जाती है– उस विरही कवित…
रिश्तों का दौर - घनाक्षरी छंद - महेश कुमार हरियाणवी
आया है ये वक्त कैसा रक्त नहीं रक्त जैसा। बेटा आज बाप को ही अर्थ समझाता है। चपर-चपर बोले सुनता ना हौले-हौले। जननी के सामने ना सर को झुक…
पिता: एक अनकहा संवाद - कविता - सुशील शर्मा
पिता कोई शब्द नहीं है, न ही कोई सम्बन्ध भर। वह तो एक अनदेखा प्रतिबिम्ब है जिसे हम तभी पहचानते हैं जब वह ओझल हो जाता है। वह जन्म नहीं …
अंतिम यात्रा - कविता - राजेश राजभर
आत्मा अविजित अमर है– सर्वविदित है नश्वर काया! अंतिम सत्य– है "मृत्यु" प्रिये, मैं कहाँ इसे झूठलाया! बंधन मुक्त नहीं थे मुझसे…
दर्दनाक विमान हादसा - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | अहमदाबाद विमान हादसे पर दोहे
दर्दनाक थी हादसा, मौत बड़ा विकराल। एयर इंडिया का पतन, हालत था बदहाल॥ निर्दोषों की मौत से, फैला हाहाकार। ढाई सौ से भी अधिक, हुई मौत चित…
ईश्वर है रखवाला - मुक्तक - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
क्षणभंगुर यह अरे जीवनी! रुको नहीं तुम पथ पर। साहस धैर्य प्रेम का आश्रय ले रहना तुम गत्वर॥ सत् पथ चलो 'अंशुमाली' तुम ईश्वर है र…
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