या मकानों का सफ़र अच्छा रहा - ग़ज़ल - डॉ॰ राकेश जोशी

अरकान : फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
तक़ती : 2122  2122  212

या मकानों का सफ़र अच्छा रहा,
या ख़ज़ानों का सफ़र अच्छा रहा।

जो ज़बाँ लेकर चले थे, मिट गए,
बे-ज़बानों का सफ़र अच्छा रहा।

भूख के क़िस्से ग़रीबों ने सुने,
दास्तानों का सफ़र अच्छा रहा।

झुग्गियों में पल रही है सभ्यता,
आसमानों का सफ़र अच्छा रहा।

कुछ बुझे चूल्हे बताते रह गए,
कारखानों का सफ़र अच्छा रहा।

मुश्किलें सारी पहाड़ों पर मिलीं,
पर, ढलानों का सफ़र अच्छा रहा।

था सफ़र नादान लोगों का कठिन,
कुछ सयानों का सफ़र अच्छा रहा।

पीढ़ियाँ-दर-पीढ़ियाँ पूजी गईं,
हुक्मरानों का सफ़र अच्छा रहा।

डॉ॰ राकेश जोशी - देहरादून (उत्तराखंड)

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